किस्सा यों हुआ कि खाते समय चप्पल पर भात के कुछ कण गिर गए थे जो जल्दबाज़ी में दिखे नहीं । फिर तो काफी देर तलुओं पर उस चिपचिपाहट की ही भेंट चढ़ी रहीं तमाम महान चिंताएँ ।
हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ